COMPARISION OF AAP & BJP

SURI JI,
You are right that BJP needs change. Leadership must be available for conversation with common man. How one can reach to you and how you can understand requirement of common man. No doubt it is more easy to reach to BJP than congress leadership which show all kind of road show and other shows to meet common man but it is for a circle and camera only. Otherwise our PM don't know how much cylinders were required for a family in a year, weather diesel effect more on price rise or petrol, how corruption is effecting day to day life of common man, how security is concern with common man.
At the same time administrative changes were also required to meet out need of common man in implementation of policies. Both were side by side and must adopt changes immediately. more  

Dear Lovelaish ji; You ask so respectfully, I give my opinion as respectfully. This is not AAP's. this is mine. Except for an inifinitesimally small number of priviledged persons, all of us are Aam Aadmis. Aam Aadmi does not necessarily mean poor man. For example I am the MD of a small private limited co, but I am as much a common man as a street vendor. I have to struggle to earn living for myself and people employed/dependent upon me. I have to deal with various Govt offices and to satisfy them and to somehow keep the business going. I have to live in fear lest any mistake from our side lands us in trouble. Kejriwal understood this, the problem and issues of us Aam Aadmis - Bijli, Paani, Corruption, transport, safety, etc and tried to do something. What he could, what he couldn't, whether right or wrong, useful or useless, people will give their verdict. I hope you find my view of some relevance to your querry. more  
Respected Goyal Ji, I dont understand how your leadership project themselves as common man. I want to understand from you what is the definition of common man as per so called AAP Philosophy. The people like Kejriwals, Bhushans, Kumars or Shazias etc. not only belong to the elite class but also demonstrate the elite anarchical mindset of East India Company. Have you read the statement of Mr Kejriwal which he made during the speech at Chandni Chowk where he said " Me Kaha Baag Gaya Me KIs Ki................" . I think that your definition of common man is like that and he should speak like MR AK. Sir do u endorse that statement and dont say that i know about it. You can see Times of India dt7.04.2013 . I wish if u can share your opinion about this statement Or that type of statements are in the roots of AAP. more  
'ग़ैर-हिंदुत्व और हिंदुत्व' के बीच फंसी भाजपा By BBC Hindi, 08 Apr 2014 11:05 AM http://newshunt.com/share/28317989 2014-04-07T18:33:47+05:30 अजित साही आम चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है. घोषणापत्र से ज़ाहिर होता है कि जीत और सत्ता की चाह ने एक बार फिर पार्टी को ग़ैर-हिंदुत्व और हिंदुत्व के दो पाटन के बीच लटका दिया है. पहले जीत और सत्ता की चाह में हो रहे हिंदुत्व के पाटन की बात करते हैं. भाजपा की ओर से हमेशा ये संकेत रहे हैं कि उन्हें मुसलमानों के वोट की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनका एजेंडा ही हिंदुत्व का है. ऐसे में उनकी राजनीति स्वत: मुस्लिम-विरोधी हो जाती है. लेकिन घोषणापत्र में मुसलमानों को जीतने की भाजपा की पुरज़ोर कोशिश दिखाती है कि उन्हें मालूम है कि बग़ैर मुसलमानों के वोट के भाजपा अकेले दम पर लोकसभा में बहुमत नहीं पा सकती है. भाजपा का घोषणपत्र कहता है भाजपा सरकार देश भर के मदरसों में विज्ञान और गणित की पढ़ाई शुरू करवाएगी. ध्यान देने की बात है कि घोषणापत्र समिति के मुखिया मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि मुसलमानों को शिक्षा और उद्योग में उचित मौक़ा मिलना चाहिए. अगर भाजपा वाक़ई संजीदा है तो ये वादे अहम हैं. ये दिखाते हैं कि पिछले बीस सालों में अगड़ों, पिछड़ों, सिखों और दलितों की राजनीति करने के बाद भाजपा मुस्लिम हितैषी बन कर भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की उत्तराधिकारी बनना चाहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इस घोषणापत्र को पढ़ते ही मुसलमानों का दिल पिघल जाएगा और वो झट से भाजपा को वोट दे देंगे. हिंदुत्व के पाटन की मजबूरी में एक बार फिर भाजपा ने अयोध्या में रामजन्मभूमि के विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण कराने का वादा कर दिया है. और शायद ही कोई भारतीय मुसलमान बाबरी मस्जिद की ज़मीन से अपने वजूद को अलग कर सकता है. युवा मतदाताओं ने रामजन्मभूमि की कहानी भले ही सुन रखी हो, संविधान के अनुच्छेद 370 और यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड के बारे में उनको शायद ही मालूम होगा. यह सब जानते हुए भी कि आज के वोटर इन मुद्दों से प्रभावित नहीं होंगे. भाजपा ने मजबूरन इन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया है क्योंकि ऐसा नहीं करने से उस पर हिंदू मुद्दों का तिरस्कार करने का आरोप आ जाता. अनुच्छेद 370 मुस्लिम बाहुल्य जम्मू-कश्मीर को देश के बाक़ी राज्यों के मुकाबले विशेष दर्ज़ा देता है जो हिंदुत्व को क़ुबूल नहीं है. यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड मुसलमानों को शादी, तलाक़ और उत्तराधिकार जैसे निजी मामले में क़ुरान की रीति पर चलने की मिली आज़ादी को ख़त्म करने की बात करता है. दोनों मुद्दे भाजपा को मुसलमानों से दूर रखते रहे हैं और रखते रहेंगे. यूँ तो घोषणापत्र में हर क़िस्म के वादे हैं, उसका अधिक ज़ोर शहरों पर है जहाँ भाजपा को जीत की ज़्यादा उम्मीद रहती है. भाजपा का दावा है कि वो शहरी इलाक़ों में सार्वजनिक वाईफ़ाई इंटरनेट का प्रावधान करेगी और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देगी. लेकिन घोषणापत्र ये नहीं बताता कि उच्च शिक्षा के बढ़ावे के लिए पार्टी कौन से ठोस क़दम उठाएगी. भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि घोषणापत्र में किए गए ये वादे युवा वोटरों को आकर्षित करेंगे. भाजपा की पिछली सरकार ने विदेश में पढ़ाई के लिए आसान किश्तों पर छात्र-छात्राओं को सरकारी बैंकों से ऋण दिलाया जिसके कारण पढ़े-लिखे युवा वर्ग ने उनका साथ दिया था. इन सबके बावजूद 2004 के आमचुनाव में भाजपा की तत्कालीन सरकार युवाओं का ज़्यादा वोट नहीं खींच पाई थी. कई वादे ऐसे हैं जिन पर अमल करना अगर असम्भव नहीं तो बेहद मुश्किल होगा. भाजपा का वादा है कि वह शिक्षा पर सरकारी ख़र्च को बढ़ाकर जीडीपी का छह फ़ीसद कर देगी. यानि आज शिक्षा पर जितना ख़र्च होता है लगभग उसका दोगुना. लेकिन घोषणापत्र ये नहीं बताता है कि इस ख़र्च के लिए भाजपा की सरकार 6.5 लाख करोड़ रुपए आख़िर कहाँ से लाएगी. उदारवादी आर्थिक नीति की पक्षधर भाजपा, ख़ासतौर से उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, हर व्यवस्था के निजीकरण की हिमा़यत करते हैं. उनका ये वादा उनकी आर्थिक सोच का अंतर्विरोध दिखाता है. इसी तरह मौलिक सुधार के अधिकतर वादों पर अमल मुश्किल होगा. न्यायालयों की संख्या दोगुनी कर देने का वादा अव्यवहारिक है. न केवल इसके लिए रक़म जुगाड़ना मुश्किल होगा, बल्कि इसका भी भरोसा नहीं कि जजों की संख्या दोगुने हो जाने से मुक़दमों में भी वृद्धि नहीं होगी. ऐसा ही एक वादा उद्योग से जुड़े लोगों, शिक्षाविदों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को नौकरशाही में सम्मिलित करने से जुड़ा हुआ है. यहां भी सवाल उठता है कि क्या अफ़सर कभी भी ग़ैर-बाबुओं को अपने बीच आसानी से जगह देंगे? इसी तरह भाजपा के घोषणापत्र में औद्योगिक विनिर्माण में तेज़ी लाने के और कृषि विकास के तमाम वादे सतही हैं. ये कहना आसान है कि रोज़गार-प्रधान उद्योगों को बढ़ावा दिया जाएगा. लेकिन उद्योग लगाने के लिए बाज़ार का होना भी आवश्यक है जहां निर्मित माल बेचा जा सके. पिछले छह सालों की आर्थिक मंदी के चलते यूरोप और अमरीका के विकसित देशों के बाज़ार ठंडे पड़े हैं. इस वजह से चीन, पूर्वोत्तर एशिया और दक्षिण अमेरिका के निर्माण-प्रधान मुल्कों के उद्योगों में काट-छाँट का दौर जारी रहा है. ऐसे में व्यापक स्तर पर भारत में ताज़ा राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय निवेश होना कम ही सम्भव दिखता है. कालाबाज़ारी से निपटने के लिए भाजपा कहती है कि वो एक मूल्य स्थिरीकरण कोष स्थापित करेगी. और गोदाम में माल छिपा कर रखने वालों पर मुक़दमे चलाने के लिए विशेष अदालतें बनाएगी. आख़िर इस ख़र्च के लिए उगाही कहाँ से होगी? भाजपा कहती है कि वो कृषि में पारंपरिक रोज़गार के रास्ते मज़बूत करेगी. साथ ही वो कृषि में तकनीकी सुधार की भी बात करती है. दरअसल पार्टी की सोच क्या है ये तभी पता चलेगा जब वो अपनी कृषि नीति की विस्तृत जानकारी देगी. घोषणापत्र कहता है कि भाजपा सरकार हर नागरिक को पक्का घर मुहैया कराएगी और सस्ते घरों की स्कीम निकालेगी. लेकिन वह ये नहीं बताती ये सब कैसे होगा. भारत में हर छठा नागरिक झुग्गी-झोंपड़ी में रहता है. शहरों में 100 में एक इंसान बेघर है. भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए भाजपा के वादे ठोस नहीं हैं. आश्चर्य है कि जहाँ आम आदमी पार्टी ने जनलोकपाल का नारा देकर दे सवाल से एजेंडा तय किया हुआ है वहाँ भाजपा सिर्फ़ ई-गवरनेंस की बात कर रही है. भाजपा का सबसे रोचक सुझाव है कि वह लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ करवाएगी. ऐसा हो जाने से चुनावी ख़र्च बहुत कम हो जाएगा. लेकिन क्या ये संसदीय प्रणाली के आधार को ही नहीं ख़त्म कर देगा? more  
Who knows the needs of common man better than AAP whose roots are in the Aam Aadmi! more  
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